नवरात्रि का तीसरा दिन, मां चंद्रघंटा का प्यार शक्ति, शांति और सौंदर्य की देवी मां की कृपा से बढ़े आत्मविश्वास

नवरात्रि का तीसरा दिन देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा को समर्पित होता है। मां चंद्रघंटा सौंदर्य, शांति और वीरता की देवी हैं। उनका स्वरूप अत्यंत प्रभावशाली और मन को मोह लेने वाला होता है। मां के मस्तक पर अर्धचंद्र से सजी हुई घंटे के आकार की आकृति होती है, जिस कारण इनका नाम “चंद्रघंटा” पड़ा। इनका शरीर स्वर्ण के समान चमकदार है, दस भुजाएं हैं और सिंह इनका वाहन है। उनके हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र होते हैं जो इस बात का प्रतीक हैं कि वे हर संकट और बुराई का सामना करने में सक्षम हैं।

मां चंद्रघंटा का यह रूप भक्तों को साहस, आत्मविश्वास और शक्ति प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि इनकी पूजा से भय, चिंता और मानसिक अशांति का नाश होता है। यह देवी भक्तों को दिव्य आभा और आंतरिक ऊर्जा प्रदान करती हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक को अदृश्य शक्तियों का अनुभव भी हो सकता है, और उसका आत्मबल इतना प्रबल हो जाता है कि वह हर कठिन परिस्थिति का सामना शांत चित्त से कर सकता है।

इस दिन पूजा करते समय घर को साफ-सुथरा रखा जाता है और देवी के आसन पर पीले या सुनहरे वस्त्रों से सजा कर उन्हें विराजमान किया जाता है। मां को दूध, केसर, मिश्री, कमल का फूल और घी का दीपक अर्पित किया जाता है। पूजा में शांत स्वर में घंटी बजाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वातावरण में शुद्धता आती है।

साथ ही, मां के ध्यान और स्तुति के माध्यम से साधक अपने मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करता है। यह दिन उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो आत्मिक विकास, आध्यात्मिक शक्ति और भयमुक्त जीवन की कामना रखते हैं। मां चंद्रघंटा का आशीर्वाद मिलने से व्यक्ति का चेहरा तेज़ से दमकने लगता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

तीसरे नवरात्र के दिन मां चंद्रघंटा की पूजा से मनोबल, संकल्प शक्ति और दिव्यता प्राप्त होती है। यह दिन हमें सिखाता है कि आंतरिक शांति और बाहरी साहस का मेल ही सच्ची शक्ति है। जो भक्त सच्चे मन से मां की उपासना करता है, उसे कभी भी किसी बुरे प्रभाव या डर का सामना नहीं करना पड़ता।

मां चंद्रघंटा का मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता,
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।
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वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्,
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्।
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मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्,
रंग, गदा, त्रिशूल,चापचर,पदम् कमण्डलु माला, वराभीतकराम्।

 

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