गोवर्धन पूजा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत के अद्भुत चमत्कार के स्मरण में मनाया जाता है। यह पर्व दिवाली के अगले दिन, कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा को आयोजित किया जाता है।पुराणों के अनुसार, बृजवासियों ने वर्षा ऋतु में इंद्र देव की पूजा की, क्योंकि वे सोचते थे कि वर्षा इंद्र देव ही भेजते हैं। बाल रूप में भगवान कृष्ण ने उन्हें समझाया कि गोवर्धन पर्वत, गाय, घास और वृंदावन की भूमि असली संरक्षण स्रोत हैं।
इंद्र देव की नाखुशी के कारण भारी वर्षा हुई, तब श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों, गायों और सभी जीवों को सुरक्षित किया। सात दिनों तक यह पर्वत बारिश से बचाव का प्रतीक बना। अंततः इंद्र ने हार मान ली। इसी घटना के स्मरण में आज गोवर्धन पूजा मनाई जाती है।
गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा में घरों के आंगन को रंग-बिरंगी रंगोली से सजाया जाता है। विशेष रूप से गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। इस रंगोली में कान्हा को गोबर या मिट्टी से भी बनाया जा सकता है। यह पूजा प्रकृति और गाय के प्रति सम्मान प्रकट करने का एक अनूठा तरीका है।
अन्नकूट और 56 भोग
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को 56 प्रकार के व्यंजन भोग के रूप में अर्पित किए जाते हैं। इसका कारण यह है कि माता यशोदा ने कृष्ण को आठ पहर भोजन कराया करते थे। जब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया, तब उन्होंने सात दिनों तक भोजन नहीं किया। इसलिए 7×8=56 व्यंजन बनाए गए। इसमें मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा और कसैला सभी प्रकार के स्वाद शामिल होते हैं।
पूजा की विधि
इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है।फूल, धान, घास और दीपक से सजावट की जाती है। अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।गायों की पूजा और चरागाह की सफाई की जाती है और पर्वत की परिक्रमा की जाती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गोवर्धन पूजा सिर्फ भगवान कृष्ण की महिमा का प्रतीक नहीं, बल्कि यह प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन को भी दर्शाता है। इस दिन दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है और पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है।ब्रजभूमि के प्रमुख स्थल जैसे वृंदावन, मथुरा, बरसाना, भरतपुर और नंदगांव में गोवर्धन पूजा बड़े उत्सव के रूप में मनाई जाती है।
गोवर्धन पूजा हमें यह सीख मिलती है कि भगवान केवल मंदिरों में नहीं बल्कि प्रकृति के हर कण में हैं। इस दिन हमें प्रकृति का संरक्षण करना और सभी जीवों के प्रति दया भाव रखना चाहिए।