31 अक्टूबर यह तारीख भारतीय इतिहास में अमर हो चुकी है। आज ही के दिन साल 1984 में भारत ने अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी को खो दिया था।उनका जीवन सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं था; वे भारत की आत्मा की आवाज़, दृढ़ता, निडरता और अटूट नेतृत्व का प्रतीक थीं। आज, उनकी 41वीं पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।
इंदिरा गांधी
इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू, स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, और माता कमला नेहरू स्वतंत्रता संग्राम की सक्रिय कार्यकर्ता रहीं।इंदिरा बचपन से ही राजनीति के वातावरण में रहीं। उन्होंने शांतिनिकेतन और फिर इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। 1942 में उनका विवाह फिरोज गांधी से हुआ। पिता नेहरू के सान्निध्य में उन्होंने राजनीति, स्वतंत्रता संग्राम और नेतृत्व की गहराइयों को नज़दीक से समझा।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
पंडित नेहरू के निधन के बाद, इंदिरा गांधी को 1966 में देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। यह वह दौर था जब भारत आर्थिक संकट, भूखमरी और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था।परंतु, इंदिरा गांधी ने दृढ़ता के साथ देश का नेतृत्व संभाला और “गरीबी हटाओ” का नारा देकर भारत की जनता के दिलों में उम्मीद जगाई।
महत्वपूर्ण उपलब्धियां
इंदिरा गांधी ने गरीब तबके के उत्थान के लिए योजनाएं शुरू कीं। उनका “गरीबी हटाओ, देश बचाओ” नारा आज भी भारत की सामाजिक-आर्थिक नीतियों की आधारशिला माना जाता है।1971 में उनके नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान पर ऐतिहासिक विजय प्राप्त की, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का गठन हुआ। इस जीत ने उन्हें “Iron Lady of India” का खिताब दिलाया।1974 में इंदिरा गांधी ने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित किया। यह आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत का निर्णायक कदम था, जिसने दुनिया को चौंका दिया।उनके शासनकाल में शुरू हुई हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। किसान को सशक्त करने की यह नीति भारत की खाद्य सुरक्षा का स्तंभ बनी।1969 में उन्होंने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जिससे गरीबों और किसानों को वित्तीय सहायता की पहुंच बढ़ी। यह भारत की आर्थिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम था।
विवादों से घिरा आपातकाल
1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया। यह निर्णय उनके राजनीतिक जीवन का सबसे विवादास्पद अध्याय साबित हुआ।हालांकि इसकी आलोचना हुई, लेकिन इंदिरा गांधी के समर्थकों ने इसे देश की स्थिरता बनाए रखने की कोशिश के रूप में देखा।
शहादत का दिन 31 अक्टूबर 1984
31 अक्टूबर 1984 की सुबह, इंदिरा गांधी अपने आवास 1 सफदरजंग रोड से 1 अकबर रोड स्थित कार्यालय की ओर जा रही थीं।गेट पर उनके अंगरक्षक बेअंत सिंह और सतवंत सिंह तैनात थे।दोनों ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया, और उसी क्षण बेअंत सिंह ने रिवॉल्वर निकालकर उन पर गोलियां चला दीं। सतवंत सिंह ने स्टेनगन से लगातार फायरिंग की।गोलियों से छलनी इंदिरा गांधी को तुरंत एम्स अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।उनकी हत्या ने पूरे भारत को शोक और आक्रोश में डूबो दिया। दिल्ली और देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे।
विरासत और प्रेरणा
इंदिरा गांधी का जीवन और उनकी नीतियां आज भी भारत के विकास की दिशा को प्रभावित करती हैं।उन्होंने दिखाया कि नेतृत्व केवल सत्ता की चाह नहीं, बल्कि सेवा, समर्पण और साहस की परीक्षा है।उनकी दृढ़ता का सबसे सशक्त उदाहरण 1977 के बाद बेलछी गाँव की यात्रा रही — जब उन्होंने बारिश और कीचड़ में हाथी पर बैठकर अत्याचार झेल रहे दलित परिवारों तक पहुँच बनाई।यह वही क्षण था जिसने उनके राजनीतिक पुनरुत्थान की नींव रखी।
नेताओं की श्रद्धांजलि
आज शक्ति स्थल पर देश के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि“साहस, दृढ़ विश्वास और राष्ट्र के प्रति निष्ठा की प्रतीक श्रीमती इंदिरा गांधी जी को सादर नमन। उन्होंने दिखाया कि एक नेता का असली मापदंड केवल सत्ता नहीं, बल्कि जनता के प्रति जिम्मेदारी है।”
इंदिरा गांधी भारतीय राजनीति की वह शख्सियत थीं जिन्होंने साबित किया कि महिला नेतृत्व केवल प्रतीक नहीं, परिवर्तन की शक्ति है।उन्होंने भारत को वैश्विक मंच पर नई पहचान दिलाई, आत्मनिर्भरता की राह दिखाई और समाज के हर तबके को आवाज़ दी।
