देश की वो गंभीर समस्या जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट भी सख्त हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के हमलों की बढ़ती घटनाओं पर सख्ती अपनाई है, जिसके बाद सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव पेश हुए और बिना शर्त माफी मांगी।दरअसल एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स के पालन को लेकर हलफनामा दाखिल न करने को लेकर कोर्ट ने सवाल पूछा था। कोर्ट ने उनकी माफी स्वीकार कर ली और अगली तारीखों में व्यक्तिगत पेशी से छूट दे दी, लेकिन चेतावनी भी दी कि भविष्य में कोई चूक हुई तो सख्त कार्रवाई होगी। इसके साथ ही कुत्ते के काटने से प्रभावित लोगों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया गया और उन्हे कोर्ट में हस्तक्षेप की इजाजत दे दी गई हैं। खास बात यह कि कुत्तों के समर्थकों के लिए हस्तक्षेप पर 25 हजार और 2 लाख रुपये की जमा राशि अनिवार्य थी, लेकिन पीड़ितों को इससे छूट मिली है।

27 अक्टूबर को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल और तेलंगाना को छोड़कर बाकी सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव को तलब किया था। उस वक्त सिर्फ पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और दिल्ली नगर निगम ने ही हलफनामा दाखिल किया था। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि नोटिस सभी को भेजा गया था, फिर भी कई राज्यों की ओर से कोई प्रतिनिधि तक नहीं आया।आज सुनवाई में चीफ सेक्रेटरीज ने हाजिरी दी और अनकंडीशनल अपॉलजी मांगी। जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा कि आगे से ऐसी गलती हुई तो मुख्य सचिवों को फिर बुलाया जाएगा। गौरतलब है कि कोर्ट ने एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया को भी मामले में पक्षकार बनाया है। कोर्ट ने सरकारी दफ्तरों में कुत्तों को खिलाने की प्रथा पर भी सख्ती दिखाई है। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने कहा कि वे कुछ दिनों में इस पर आदेश जारी करेंगे। कोर्ट का कहना था कि सरकारी संस्थानों में कर्मचारी खुद कुत्तों को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे समस्या बढ़ रही है। वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने हस्तक्षेप की कोशिश की और कहा कि इस मुद्दे पर उन्हें सुना जाए। लेकिन बेंच ने साफ इनकार कर दिया। जस्टिस नाथ ने कहा, “सरकारी संस्थानों के मामले में हम किसी को नहीं सुनेंगे।” नंदी ने दिल्ली की स्थानीय निकायों की ओर से निर्धारित फीडिंग एरिया में खामियां होने की बात भी उठाई, जिस पर कोर्ट ने कहा कि इसे अगली सुनवाई में देखा जाएगा।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कुत्ते के काटने से पीड़ित लोगों के हस्तक्षेप आवेदनों को मंजूरी दे दी। उन्हें कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा राशि देने से छूट मिली, जबकि कुत्तों के पक्ष में हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों को 25 हजार और एनजीओ को 2 लाख रुपये जमा करने पड़ते हैं। कोर्ट ने पीड़ितों की बात सुनने का फैसला किया है और पूरा मामला 7 नवंबर को अगली सुनवाई के लिए रखा गया है। कोर्ट का जोर इस बात पर है कि आवारा कुत्तों की समस्या को नियंत्रित करने के लिए एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स का सख्ती से पालन हो। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि सरकारी इमारतों में फीडिंग पर रोक का आदेश जल्द अपलोड होगा।हर साल भारत में 37 लाख कुत्ते काटते हैं, दुनिया में रेबीज से होने वाली 36% मौतें भारत में होती हैं; हर चार घंटे में एक बच्चा मरता है। सिर्फ दिल्ली में, 2025 के मध्य तक, 35,198 कुत्ता काटने की घटनाएं और 49 मौतें हुई हैं। यहां का प्यार जानलेवा है- जितना ज्यादा हम खिलाते हैं, उतना ही ज्यादा उनकी आबादी बढ़ती है।
एक असंक्रमित मादा कुत्ता, जो छह सालों तक प्रति वर्ष दो बच्चे पैदा करती है, उसके कुल से लगभग 33,510 संतानें हो सकती हैं, बशर्ते कि प्रति बच्चा 6 पिल्ले हों, उनके जीवित रहने की दर 80% हो और आगामी पीढ़ियां 1 साल की आयु से उसी दर से बच्चे पैदा करें ऐसा होना जरूरी नहीं है।पोलियो का उन्मूलन कभी असंभव कहा जाता था। लेकिन टीकों, पोलियो उन्मूलन अभियानों और जवाबदेही की समय-सीमाओं ने इसे संभव बना दिया। आवारा प्रबंधन के लिए भी इसी निर्ममता की आवश्यकता है। दिल्ली के दस लाख कुत्तों को दूसरी जगह ले जाने की सुप्रीम कोर्ट की 2025 की योजना से पूरे भारत में आक्रोश फैल गया है और लोग कह रहे हैं कि यह ‘नरसंहार’ है। कुत्तों के प्रति चिंता जायज है- कुत्तों को ऐसे आश्रयों में नहीं रखा जा सकता जो मौत और सड़न के शिविरों में बदल सकते हैं। उन्हें सहानुभूति, देखभाल और जीने का अधिकार मिलना चाहिए। लेकिन जिम्मेदारी के बिना क्रोध दिखाना उस गली के कुत्ते की तरह ही जो अपनी ही पूंछ का पीछा कर रहा है, या उस गाय माता के समान है जो सड़क किनारे प्लास्टिक खा रही है- यानी समस्या पर खाली शोर मचाना, समाधान की तरफ न जाना।