हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में इस वर्ष की दिवाली हजारों परिवारों के लिए सिर्फ एक तारीख बनकर रह गई। भारी बारिश और भूस्खलन के कारण कई घर उजड़ गए और लोग तिरपाल तले, अस्थायी शिविरों और किराए के कमरों में रातें काट रहे हैं। इस आपदा ने न सिर्फ उनका आशियाना छीना है, बल्कि दीपों और मिठाइयों की रौनक भी फीकी कर दी है।
कुल्लू जिले में लगभग 400 से अधिक परिवार इस साल दीपावली अपने घरों में नहीं मना पाएंगे।कुछ परिवार तंबू में, कुछ रिश्तेदारों और पड़ोसियों के घरों में, तो कुछ अस्थायी भवनों और स्कूल में रहने को मजबूर हैं।प्रभावित लोगों में खेमराज, राजवीर, डोले राम, ठाकर दास, लाल चंद और दौलत राम जैसे परिवार शामिल हैं, जिन्होंने कहा कि इस बार घर उजड़ जाने के कारण दिवाली का त्योहार उनके लिए केवल दर्द बन गया है।मानसून आपदा ने सराज घाटी की दीपावली की खुशियों को पूरी तरह छीन लिया।प्रमुख बाजार जैसे बगस्याड़, थुनाग और जंजैहली सूने नजर आ रहे हैं।दुकानदार अभी भी अपनी दुकानें दोबारा व्यवस्थित नहीं कर पाए हैं, कई दुकानें मलबे में तब्दील हैं।स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस बार न तो दीप जलेंगे और न ही मिठाइयां बंटेंगी, क्योंकि लोग अब भी आपदा आश्रय स्थलों में रह रहे हैं।
इनमें से 37 परिवार रिश्तेदारों के घर, 10 अपने दूसरे घरों में, 12 किराए के कमरों में और कुछ तंबू या पंचायत भवनों में रहने को मजबूर हैं।
इस वर्ष की दिवाली उनके लिए केवल सन्नाटा और दुख लेकर आई है।
इस मानसून सीजन में हिमाचल में भारी बारिश और आपदा से 4,881 करोड़ रुपए की संपत्ति का नुकसान हुआ।
प्रदेश में 454 लोग मारे गए, 50 लोग अभी भी लापता हैं।674 पक्के और 1,062 कच्चे मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं।2,376 पक्के और 5,118 कच्चे मकानों को नुकसान हुआ, साथ ही 496 दुकानें और 7,399 गोशालाएं भी क्षतिग्रस्त हुईं।
इस वर्ष की दिवाली हिमाचल के सैकड़ों परिवारों के लिए दुख और संघर्ष की छाया में बीती। जहां अन्य जगहों पर दीप जल रहे हैं और मिठाइयां बंट रही हैं, वहीं कुल्लू के आपदा प्रभावित परिवार जीवन की बुनियादी जरूरतों की जद्दोजहद में लगे हैं। प्रशासन राहत कार्यों में जुटा है, लेकिन पर्व की खुशियां लौटने में समय लगेगा।