आज(10 अक्टूबर 2025) देशभर में सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का पावन व्रत कर रही हैं। हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व अखंड सौभाग्य, पति की लंबी आयु और वैवाहिक सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला उपवास रखती हैं और शाम को माता करवा, भगवान शिव-पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करती हैं।
करवा चौथ व्रत और पूजा का समय
पंडितों के अनुसार इस वर्ष करवा चौथ की कथा और पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05:57 बजे से 07:11 बजे तक रहेगा। इसी अवधि में महिलाएं विधिपूर्वक पूजन और कथा श्रवण करेंगी। चंद्रोदय के बाद अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाएगा।
करवा चौथ की व्रत कथा
करवा चौथ का महत्व सिर्फ पूजा से ही नहीं, बल्कि इससे जुड़ी पौराणिक कथा से भी है। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में एक साहुकार की सात संतानें और एक पुत्री थी। जब पुत्री विवाहित हुई, तो पहली बार उसने करवा चौथ का व्रत रखा। शाम को भूख-प्यास से व्याकुल होने पर भाइयों ने बहन को छल से नकली चांद दिखाया और उसने व्रत तोड़ दिया। परिणामस्वरूप उसका पति मृत्यु को प्राप्त हुआ।
कहते हैं उसी समय इन्द्राणी वहां से गुज़रीं और पुत्री को समझाया कि उसने चंद्रमा के दर्शन से पहले व्रत भंग किया, इसीलिए यह दुर्भाग्य हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि वह लगातार 12 माह तक प्रत्येक चतुर्थी का व्रत रखे और अगले करवा चौथ पर विधिपूर्वक पूजा करके चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करे, तो उसका पति पुनः जीवित हो जाएगा। पुत्री ने वैसा ही किया और व्रत के प्रभाव से उसका पति जीवित हो गया। तभी से यह परंपरा आज तक निभाई जाती है।
अविवाहित कन्याओं के लिए भी महत्वपूर्ण
करवा चौथ सिर्फ विवाहित महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि अविवाहित कन्याएं भी इसे रख सकती हैं। कुंवारी लड़कियां यह व्रत मनचाहा जीवनसाथी पाने और उज्ज्वल भविष्य की कामना के लिए करती हैं। वे भगवान शिव-पार्वती या भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करती हैं और अपनी आस्था के बल पर जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शुभ फल प्राप्त करती हैं।
करवा और सींक का महत्व
इस पर्व में करवा और सींक का विशेष स्थान है। पूजा के दौरान जिस पात्र का उपयोग किया जाता है उसे करवा कहते हैं। यह प्रायः पीतल या मिट्टी का होता है और इसमें टोटी लगी होती है। इस टोटी में कांस की सींक लगाई जाती है, जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है। करवा का संबंध भगवान गणेश से भी जोड़ा जाता है, जो विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता हैं।
करवा चौथ का सांस्कृतिक महत्व
करवा चौथ केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक दृष्टि से भी बेहद खास है। यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को और अधिक मजबूत करता है। इस दिन शाम को सुहागिनें सजधज कर पारंपरिक परिधानों और सोलह श्रृंगार से लैस होकर पूजा करती हैं। कई जगहों पर महिलाएं समूह में कथा सुनती हैं और गीत गाकर वातावरण को उल्लासमय बना देती हैं।
करवा चौथ का यह व्रत न केवल अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का प्रतीक है, बल्कि दांपत्य जीवन में विश्वास, प्रेम और समर्पण को भी सुदृढ़ करता है। चाहे विवाहित महिला हो या अविवाहित कन्या, श्रद्धा और भक्ति से किया गया यह व्रत हर किसी के जीवन में सकारात्मकता और मंगलकामना लेकर आता है।